Sanskrit-छिलिहिण्ट, महामूल, पातालगरुड़, वत्सादनी, दीर्घवल्ली; Hindi-पातालगरुड़ी, छिरेटा, फरीदबूटी, चिरिहिंटा, छिरहटा, जलजमनी; Urdu-फरीदबूट्टी (Faridbutti); Odia-मूसाकानी (Musakani);Konkani–वानाटिक्टीका (Vanatiktika);Kannada–दागड़ी (Dagadi), दागाड़ीवल्ली (Dagadiballi); Gujrati-पातालग्लोरी (Patalglori), वेवड़ी (Vevadi); Telugu-दूसरतिगे (Dusartige), चीप्रुतिगे (Chieeprutige); Tamil-कातुककोदी (Kattukkodi); Bengali-हुएर (Huyer);Nepali–कासे लहरो (Kaselahro); Punjabi-फरीद बूटी (Farid buti); Marathi-वासनवेल (Vasanvela), भूर्यपाडल
Patalgarudi: बेहद गुणकारी है पातालगरुड़ी- (knowledge)
पातालगरुड़ी नाम सुनकर अजीब लग रहा होगा न! हिन्दी में यह जलजमनी, छिरहटा ऐसे अनेक नामों से जाना जाता है। असल में घरों के आस-पास, नम छायादार जगहों में इस तरह के बेल नजर में आते हैं। इन बेलों के कारण जल जम जाते हैं वहां इसलिए इन्हें जलजमनी भी कहा जाता है। आयुर्वेद में लेकिन इस बेल के अनेक औषधीय गुण का परिचय भी मिलता है। चलिये इसके बारे में आगे विस्तार से जानते हैं।
पातालगरुड़ी क्या है? (What is Patalgarudi in Hindi?)
पातालगरुड़ी बेल बरसात के दिनों में सब जगह उत्पन्न होती है, इसके पत्तों को पीसकर पानी में डालने से पानी जम जाता है, इसलिए इसको जलजमनी कहते हैं। इसकी जड़ के अन्त में जो कन्द या बल्ब होता है, उसे जल में घिसकर पिलाने से उल्टी करवाकर सांप का विष निकालने में मदद मिलती है, अत: इसे पातालगरूड़ी कहते हैं। पाठा मूल के स्थान पर इसकी जड़ों को बेचा जाता है या पाठा मूल के साथ इसकी जड़ों की मिलावट की जाती है।
पाठा के जैसी किन्तु अधिक मोटी तथा दृढ़ लता होती है। नई बेल धागा जैसी पतली तथा पुरानी बेल अधिक मोटी होती है। इसके फल छोटे, गोल, चने के बराबर, चिकने, झुर्रीदार, बैंगनी काले रंग के, मटर आकार के, कच्ची अवस्था में हरे तथा पकने पर काले या बैंगनी रंग के होते हैं। इसकी जड़ टेढ़ी, स्निग्ध, हलकी भूरी अथवा पीले रंग की, जमीन में गहराई तक गई हुई, सख्त तथा अन्त में कन्द से युक्त व स्वाद में कड़वी होती है।
अन्य भाषाओं में पातालगरुड़ी के नाम (Names of Patalgarudi in Different Languages)
पातालगरुड़ी का वानास्पतिक नाम Cocculushirsutus (Linn.) W.Theob.(कोकुलस हिर्सुटस) Syn-Cocculus villosus DC. Menispermum hirsutum Linn. होता है। इसका कुल Menispermaceae(मेनिस्पर्मेसी) होता है और इसको अंग्रेजी में Broom creeper (ब्रूम क्रीपर) कहते हैं। चलिये अब जानते हैं कि पातालगरुड़ी और किन-किन नामों से जाना जाता है।
Sanskrit-छिलिहिण्ट, महामूल, पातालगरुड़, वत्सादनी, दीर्घवल्ली;
Hindi-पातालगरुड़ी, छिरेटा, फरीदबूटी, चिरिहिंटा, छिरहटा, जलजमनी;
Urdu-फरीदबूट्टी (Faridbutti);
Odia-मूसाकानी (Musakani);
Konkani–वानाटिक्टीका (Vanatiktika);
Kannada–दागड़ी (Dagadi), दागाड़ीवल्ली (Dagadiballi);
Gujrati-पातालग्लोरी (Patalglori), वेवड़ी (Vevadi);
Telugu-दूसरतिगे (Dusartige), चीप्रुतिगे (Chieeprutige);
Tamil-कातुककोदी (Kattukkodi);
Bengali-हुएर (Huyer);
Nepali–कासे लहरो (Kaselahro);
Punjabi-फरीद बूटी (Farid buti);
Marathi-वासनवेल (Vasanvela), भूर्यपाडल (Bhuryapadal);
Malayalam-पाथाअलमूली (Paathaalamuuli)।
English-इन्क बेरी (Ink berry);
Persian-फरीद बूटी (Farid Butti)।
पातालगरुड़ी का औषधीय गुण (Medicinal Properties of Patalgarudi in Hindi)
पातालगरुड़ी के फायदों के बारे में जानने के पहले औषधीय गुणों के बारे में जानना जरूरी होता है। चलिये इसके बारे में आगे जानते हैं-
सिरदर्द से दिलाये आराम पातालगरुड़ी (Patalgarudi Beneficial to Treat Headache in Hindi)
हर दिन तनाव से सर फटने लगता है तो पातालगरुड़ी का इस्तेमाल इस तरह से करने पर जल्दी आराम मिल सकता है। इसके लिए पातालगरुड़ी जड़ तथा पत्ते को पीसकर सिर पर लगाने से सिरदर्द से आराम मिलने में मदद मिलती है।
रतौंधी के इलाज में लाभकारी पातालगरुड़ी (Benefit of Patalgarudi in Nightblindness in Hindi)
पातालगरुड़ी का औषधीय गुण पातालगरुड़ी के पत्तों को पकाकर सेवन करने से रात्र्यान्धता (रतौंधी) में लाभ होता है।
आँखों के रोगों से दिलाये राहत पातालगरुड़ी (Uses of Patalgarudi to Treat Eye Diseases in Hindi)
पातालगरुड़ी पत्ते के रस का अंजन करने से अभिष्यंद (आँखों का आना) तथा आँखों में दर्द में लाभ होता है।
दांतों के दर्द को कम करने में फायदेमंद पातालगरुड़ी (Patalgarudi Beneficial to Get Relief from Toothache in Hindi)
दांत दर्द से परेशान रहते हैं तो पातालगरुड़ी के औषधीय गुणों का इस्तेमाल इस तरह से करने से जल्दी आराम मिलता है। पातालगरुड़ी पत्ते के पेस्ट को दाँतों पर मलने से दांत दर्द से आराम मिलता है।
अजीर्ण या बदहजमी के इलाज में लाभकारी पातालगरुड़ी (Benefits of Patalgarudi in Indigestion in Hindi)
खाने-पीने में गड़बड़ी होने के वजह से बदहजमी की समस्या से परेशान रहते हैं तो 1-2 ग्राम पातालगरुड़ी जड़ चूर्ण में समान भाग में अदरक तथा शर्करा मिलाकर सेवन करने से अजीर्ण से आराम मिलता है।
अतिसार या दस्त को रोकने में फायदेमंद पातालगरुड़ी (Uses of Patalgarudi to Get Relief from Diarrhoea in Hindi)
खान-पान में असंतुलन होने से अक्सर दस्त जैसी समस्या होती है। 5 मिली पातालगरुड़ी जड़ के रस का सेवन करने से अतिसार में लाभ होता है।
श्वेतप्रदर या ल्यूकोरिया के इलाज में लाभकारी पातालगरुड़ी (Patalgarudi Beneficial in Leucorrhoea in Hindi)
पातालगरुड़ी के नये पत्तों का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली काढ़े में शर्करा मिलाकर सेवन करने से श्वेतप्रदर में लाभ होता है।
पूयमेह या गोनोरिया से राहत दिलाने में फायदेमंद पातालगरुड़ी (Benefits of Patalgarudi to Get Relief from Gonorrhoea in Hindi)
5 मिली पातालगरुड़ी पत्ते के रस को जल में जैली की तरह जमाकर और दही के साथ सेवन करने से पूयमेह या शुक्रमेह (गोनोरिया) में लाभ होता है। इसके अलावा 5 मिली पातालगरुड़ी पत्ते के रस को पिलाने से सूजाक में लाभ होता है।
स्वप्नदोष के इलाज में लाभकारी पातालगरुड़ी (Patalgarudi Beneficial to Treat Nightfall in Hindi)
10 ग्राम छाया में सुखाया हुआ जलजमनी पत्ते के चूर्ण में घी में भुनी हुई हरड़ का चूर्ण मिलाकर, इसके समान मात्रा में मिश्री मिलाकर रख लें। प्रतिदिन सुबह शाम 2 ग्राम की मात्रा में गाय दूध के साथ सेवन करने से स्वप्नदोष में लाभ होता है। औषध सेवन काल में पथ्य पालन आवश्यक है।
आमवात या गठिया के दर्द से दिलाये राहत पातालगरुड़ी (Benefits of Patalgarudi to Get Relief from Gout in Hindi)
गठिया के दर्द से परेशान रहते हैं तो पिप्पली तथा बकरी के दूध से सिद्ध जलजमनी के 10-20 मिली काढ़े का सेवन करने से जीर्ण आमवात (गठिया) अथवा रतिज रोगों के कारण उत्पन्न दर्द में लाभ होता है। इसके अलावा 5 ग्राम जलजमनी की जड़ को 50 मिली बकरी के दूध में उबालकर छानकर, उसमें 500 मिग्रा पिप्पली, 500 मिग्रा सोंठ तथा 500 मिग्रा मरिच डालकर पिलाने से आमवात, त्वचा संबंधी बीमारियों तथा उपदंश (Syphilis) की वजह से होने वाले संधिवात में लाभ होता है। जलजमनी पत्ते को पीसकर लगाने से संधिवात या अर्थराइटिस में लाभ होता है।
त्वचा संबंधी समस्याओं में फायदेमंद पातालगरुड़ी (Patalgarudi Beneficial in Skin Diseases in Hindi)
जलजमनी पत्ते के रस का लेप करने से छाजन, खुजली, घाव तथा जलन से राहत मिलने में आसानी होती है।
राजयक्ष्मा या तपेदिक के इलाज में लाभकारी पातालगरुड़ी (Benefit of Patalgarudi to Treat Tuberculosis in Hindi)
5 मिली जलजमनी पत्ते के रस को 50 मिली तिल तेल में मिलाकर, पकाकर, छानकर तेल प्रयोग करने से क्षय रोग में लाभ होता है।
शराब व भांग की लत छुड़ाने में लाभकारी पातालगरुड़ी (Patalgarudi Beneficial in De-addiction from Alcoholism in Hindi)
जलजमनी के 2-4 ग्राम चूर्ण को प्रतिदिन 1 माह तक सेवन करने से शराब तथा भांग की आदत छूट जाती है। इसका प्रयोग करते समय यदि उल्टी हो तो इसकी मात्रा कम कर देनी चाहिए।
पेटदर्द से दिलाये आराम पातालगरुड़ी (Benefit of Patalgarudi to Treat Stomach Ache in Hindi)
लता करंज के बीजचूर्ण तथा जलजमनी जड़ के चूर्ण को मिलाकर 1-2 ग्राम मात्रा में सेवन कराने से बच्चों के पेट के दर्द से आराम मिलता है।
सांप के विष के असर को कम करने में फायदेमंद पातालगरुड़ी (Patalgarudi Beneficial to Treat Snake Poison in Hindi)
पातालगरुड़ी जड़ को पीसकर पानी में घिसकर 1-2 बूँद नाक लेने से तथा इसके 5 मिली पत्ते के रस में 5 मिली नीम पत्ते के रस में मिलाकर पीने से सांप के काटने से जो विष का असर होता है उसको कम करने में मदद मिलता है।
पातालगरुड़ी का उपयोगी भाग (Useful Parts of Patalgarudi)
आयुर्वेद के अनुसार पातालगरुड़ी का औषधीय गुण इसके इन भागों को प्रयोग करने पर सबसे ज्यादा मिलता है-
-पत्ता और
-जड़
पातालगरुड़ी का इस्तेमाल कैसे करना चाहिए (How to Use Patalgarudi in Hindi)
यदि आप किसी ख़ास बीमारी के घरेलू इलाज के लिए पातालगरुड़ी का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो बेहतर होगा कि किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही इसका उपयोग करें। चिकित्सक के सलाह के अनुसार 2-4 ग्राम चूर्ण ले सकते हैं।
पातालगरुड़ी कहां पाया या उगाया जाता है (Where is Patalgarudi Found or Grown in Hindi)
भारत में यह उष्णकटिबंधीय एवं उप-उष्णकटिबंधीय साधारण प्रान्तों में मुख्यत: हिमालय के निचले क्षेत्रों, पश्चिम बंगाल, बिहार एवं पंजाब में पाया जाता है।
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