Contents
परिचय और मूल स्थान – Introduction & Origin of Nirgundi
आयुर्वेद में कहा है – निर्ग़ुंडति शरीरं रक्षति रोगेभ्य तस्माद् निर्गुण्डी अर्थात् जो शरीर की रोगों से रक्षा करें, वह निर्गुण्डी (Nirgundi or Vitex in Hindi) कहलाती है। इसके झाड़ (Nirgundi Plant) स्वयं पैदा होते हैं और सभी जगह पाए जाते हैं। इसके पत्तों को मसलने पर उनमें से एक विशिष्ट प्रकार की दुर्गन्ध आती है। यह बूटी वात व्याधियों के लिए एक प्रसिद्ध औषधि है। यह समस्त भारत में 1500 मी की ऊँचाई पर एवं हिमालय के बाहरी इलाकों में पाई जाती है। सफेल, नीले और काले रंग के भिन्न – भिन्न फूलों वाली इसकी कई जातियाँ होती हैं, किन्तु नीला और सफेद, इसके दो मुख्य भेद हैं। पत्तों के आधार पर निर्गुण्डी की दो प्रजातियाँ मानी जाती हैं। Vitex negundo Linn. में पाँच पत्ते तथा तीन पत्ते भी पाए जाते हैं परन्तु Vitex trifoliaLinn. नामक निर्गुण्डी की प्रजाति में केवल तीन पत्ते ही पाए जाते हैं।
विविध भाषाओं में नाम – Nirgundi in different languages
Scientific name of Nirgundi:
Nirgundi in:
- English: Five leaved – chaste tree (फाईव लीवड् – चेस्ट ट्री) or हॉर्स शू वाइटेक्स (Horse shoe vitex)
- Hindi: सम्भालू, सम्हालू, सन्दुआर, सिनुआर, मेउड़ी
- Sanskrit: निर्गुण्डी, सिंधुवार, इंद्रसुरस, इंद्राणीक
- Oriya: इन्द्राणी(Indrani), बेगुंडिया (Begundiya); कन्नड़ – बिलिनेक्कि (Bilenekki), श्रुन्गोलि (Shrungoli)
- Gujrati: नगोड़ा (Nagoda), नगड़ (Nagda)
- Tamil: नोच्चि (Nocchi), कुरुनोच्चि (Kurunochi Plant), विनोच्ची (Vennochi)
- Telugu: वाविली (Vavili), नलावाविली (Nalavavili)
- Bengali: निषिन्दा (Nishinda), समालु (Samalu)
- Nepali: सेवाली (Sewali)
- Punjabi: बन्ना (Banna), मरवन (Marwan)
- Marathi: लिंगुर (Lingur), निर्गुर (Nirgur)
- Malayalam: नोची (Nochi)
- Arabic: उसलाक (Uslaque)
- Farsi: सिस्बन (Sisban), पंजागुष्ट (Panjagusht)
- Latin: Vitex negundo Linn. (वाइटैक्स निगुन्डो)
आयुर्वेद में निर्गुण्डी – Nirgundi in Ayurveda
भावप्रकाश में नील पुष्पी को ही निर्गुण्डी कहा है। चरक संहिता में सिन्दुवार की गणना विषघ्न रूप में और निर्गुण्डी की गणना कृमिघ्न दशेमानि में की गयी है। सुश्रुत ने सुरसादिगण में सुरसी (श्वेत निर्गुण्डी) और निर्गुण्डी (नीलपुष्पा) की गणना की है। जिस निर्गुण्डी के बीजों को रेणुका बीज कहा गया है, उसे अंग्रेजी में Vitex agnus – castus कहा जाता है।
गुण-कर्म एवं प्रभाव – Benefits and Impact of Nirgundi
निर्गुण्डी कफ और वात को नष्ट करता हैऔर दर्द को कम करता है। इसको त्वचा के ऊपर लेप लगाने से सूजन कम करता है, घाव को ठीक करता है, घाव भरता है, और बैक्टीरिया यादि कीड़ों को नष्ट करता है। खाए जाने पर यह भूख बढ़ाता है, भोजन को पचाता है, यकृत यानी लीवर को ठीक करता है। यह कुष्ठ रोग तथा कीड़ों को नष्ट करता है, सूजन समाप्त करता है और पेशाब बढ़ाता है। स्त्रियों में मासिक आर्तव की वृद्ध करता है। यह ताकत बढ़ाने वाला, रसायन, आँखों के लिए लाभकारी, सूखी खाँसी ठीक करने वाला, खुजली तथा बुखार विशेषकर टायफायड बुखार को ठीक करने वाला है। कानों का बहना रोकता है। इसका फूल, फल और जड़ आदि पांचों अंगों में भी यही गुण होते हैं। फूलों में उलटी रोकने का भी गुण होता है।
औषधीय प्रयोग – Nirgundi Benefits
सरदर्द – Nirgundi for Headache
निर्गुण्डी फल का 2 – 4 ग्राम चूर्ण को दिन में दो-तीन बार शहद के साथ सेवन करने से सरदर्द ठीक होता है। निर्गुण्डी के पत्तों को पीसकर सर में लेप करने से सरदर्द शांत होता है। निर्गुण्डी, सेंधा नमक, सोंठ, देवदारु, पीपर, सरसों तथा आक के बीज को ठंडे जल के साथ पीसकर गोली बना लें तथा इस गोली को जल में घिसकर मस्तक पर लेप करने से सरदर्द का शमन होता है।
और पढ़े – सरदर्द में आराम दिलाए खरबूज का सेवन
कान बहना – Nirgundi for Ear problem
निर्गुण्डी पत्तों के स्वरस में पकाए तेल को 1 – 2 बूंद कान में डालने से कान का बहना बंद होता है।
गले का दर्द और मुँह के छाले – Nigundi for Throat infections & Mouth ulcers
निर्गुण्डी के पत्तों को पानी में उबाल कर उस पानी से कुल्ला करने से गले का दर्द ठीक होता है और मुँह के छालों में भी लाभ होता है। निर्गुण्डी तेल (Nirgundi Oil) को मुंह, जीभ तथा होठों में लगाने से तथा हल्के गर्म पानी में इस तेल को मिलाकर मुख में रख कर कुल्ला करने से मुँह के छाले, गले का दर्द, टांसिल एवं फटे होंठों में लाभ होता है। इसकी जड़ को जल से पीस-छानकर 1 – 2बूँद स्वरस नाक में डालने से गंडमाला यानी गले में गांठों का रोग ठीक होता है।
और पढ़ें: गंडमाला में रतालू के फायदे
10 मि.ली. निर्गुण्डी पत्तों के स्वरस में 2 दाने काली मिर्च और अजवायन चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से पाचन-शक्ति बढ़ती है, पेटदर्द ठीक होता है और पेट में भरी गैस निकलती है।
और पढ़े: पेटदर्द में अगस्त के फायदे
विषम ज्वर यानी टायफायड में यदि रोगी की तिल्ली और लीवर बढ़ गए हो तो दो ग्राम निर्गुण्डी के पत्तों के चूर्ण में एक ग्राम हरड़ तथा 10 मि.ली. गोमूत्र मिलाकर लेने से लाभ होता है। दो ग्राम निर्गुण्डी चूर्ण में काली कुटकी व 5 ग्राम रसोत मिलाकर सुबह-शाम लेना चाहिए।
स्त्री रोग – Nirgundi for Period problems
दो ग्राम निर्गुण्डी बीज चूर्ण का सेवन सुबह – शाम करने से मासिक – विकारों में लाभ होता है। निर्गुण्डी को पीसकर नाभि, बस्ति प्रदेश और योनि पर लेप करने से प्रसव सुखपूर्वक हो जाता है।
सूजाक – Nirgundi for Gonorrhoea
सूजाक की प्रथम अवस्था में निर्गुण्डी के पत्तों का काढ़ा बहुत फायदेमन्द है। जिस रोगी का पेशाब बंद हो गया हो, वह 20 ग्राम निर्गुण्डी को 400 मि.ली. पानी में उबालकर एक चौथाई शेष रहने तक काढ़ा बना ले। इस काढ़े को 10-20 मि.ली. दिन में तीन बार पिलाने से पेशाब आने लगता है।
कामशक्ति – Nirgundi for improving sex power
40 ग्राम निर्गुण्डी और 20 ग्राम सोंठ को एक साथ पीसकर आठ खुराक बना लें। एक खुराक रोज दूध के साथ सेवन करने से मनुष्य की काम शक्ति बढ़ती है। निर्गुण्डी मूल को घिसकर शिश्न पर लेप करने से उसका ढीलापन दूर होता है।
साइटिका और गठिया – Nirgundi for Sciatica & Gout
पाँच ग्राम निर्गुण्डी चूर्ण या पत्तों का काढ़ा बना लें। इसकी 20 मि.ली. की मात्रा दिन में तीन बार पिलाने से साइटिका का दर्द दूर होता है। 10-12 ग्राम निर्गुण्डी की जड़ के चूर्ण को तिल तैल के साथ सेवन करने से सभी प्रकार के गठिया रोगों में लाभ होता है। 5-10मि.ली. निर्गुण्डी स्वरस में समान मात्रा में एरण्ड तेल (कैस्टर आइल) मिलाकर सेवन करने से वातविकार के कारण होने वाले कमरदर्द में आराम होता है। निर्गुण्डी के पत्तों से पकाए तेल की मालिश करने से तथा हल्का गर्म करके तेल लगाकर कपड़ा बाँधने से भी सभी प्रकार के गठिया के दर्दों में अत्यन्त लाभ होता है।
मोच – Nigundi for Sprain
निर्गुण्डी के पत्तों को कुचल कर उसकी पट्टी बाँधने से मोच तथा मोच के कारण होने वाले दर्द तथा सूजन ठीक होते हैं।
हाथीपाँव – Nirgundi for Elephantiasis
धतूरा, एरंड मूल, संभालू, पुनर्नवा, सहजन की छाल तथा सरसों इन्हें एक साथ मिला कर लेप करने से पुराने से पुराने हाथीपाँव में भी लाभ होता है।
नाहरू या बाला आदि चर्म रोग – Nirgundi for Skin problems
10 – 20 मिली निर्गुण्डी पत्तों का स्वरस सुबह-शाम पिलाने और फफोलों पर पत्तों की सेंक करने से नारू रोग में ठीक होता है। निर्गुण्डी की जड़ और पत्तों से पकाए तेल को लगाने से पुराने घाव, खुजली,एक्जीमा आदि चर्म रोग ठीक होते हैं। बराबर मात्रा में निर्गुण्डी के पत्ते, काकमाची तथा शिरीष के फूल को कुचल लें, उसमें घृत मिला कर लेप करें। चर्म रोग कफज विसर्प में काफी लाभ होता है। दाद से प्रभावित स्थान पर निर्गुण्डी पत्तों को घिस कर फिर निर्गुण्डी स्वरस में मिलाकर लेप करने से शीघ्र लाभ होता है। निर्गुण्डी की जड़ एवं पत्तों के स्वरस से पकाए हुए तिल तेल को पीने और उसकी मालिश आदि करने से नासूर, कुष्ठ, गठिया के दर्द, एक्जीमा आदि ठीक होते हैं।
बुखार – Nirgundi for fever
निर्गुण्डी के 20 ग्राम पत्तों को 400 मि.ली. पानी में चौथाई शेष रहने तक उबालकर काढ़ा बनायें। 10-20 मि.ली. काढ़े में दो ग्राम पिप्पली का चूर्ण मिला कर पिलाने से निमोनिया बुखार में लाभ होता है। निर्गुण्डी के 10 ग्राम पत्तों को 100 मि.ली. पानी में उबालकर प्रातःसायं देने से बुखार और गठिया में लाभ होता है। मलेरिया यानी ठंड लगकर होने वाले तेज बुखार और कफ के कारण होने वाले बुखार में अगर छाती में जकड़न हो तो निर्गुण्डी के तेल की मालिश करनी चाहिए। प्रयोग को ज्यादा असरदार बनाने के लिए तेल में अजवायन और लहसुन की 1 – 2 कली डाल दें तथा तेल हल्का गुनगुना कर लें।
विविध प्रयोग – Other benefits of Nirgundi
- निर्गुण्डी के पत्तों को पीसकर गर्म करके लेप करने से अंडकोषों में होने वाली सूजन, जोड़ों की सूजन, आमवात आदि रोगों में सूजन के कारण होने वाली पीड़ा में लाभ होता है। निर्गुण्डी के काढ़े से कटिस्नान (कमर को डुबोना) कराते हैं।
- ठंड में अधिक पानी के साथ काम करने से हाथ औ पैरों में छाले पड़ जाते हैं तो उसमें निर्गुण्डी का तेल लगाने से फायदा होता है।
- शरीर में किसी भी जगह कट फट जाने पर, रगड़ लगने या छिल जाने निर्गुण्डी का तेल लगाना बहुत लाभदायक है। यदि रक्त निकलता हो और घाव बन जाये तो पिसी हुई हल्दी बुरक कर पट्टी बाँध देनी चाहिए।
- बच्चों के दांत निकलना : निर्गुण्डी की जड़ को बालक के गले में पहनाने से उनके दांत जल्दी निकल आते हैं।
- निर्गुण्डी की जड़, फल और पत्तों के स्वरस से पकाए 10-20 ग्राम घी को नियमित पीने से शरीर पुष्ट होता है तथा दुर्बलता दूर होती है।
मात्रा एवं सेवन विधि – Dosage of Nirgundi & How to use it
स्वरस – 10-20 मि.ली., चूर्ण – 3-6 ग्राम।
टिप्पणियाँ