संस्कृत-मदयन्तिका, मेदिका, नखरंजका, नखरंजनी, रंजका, राजगर्भा, सुगन्धपुष्पा, रागाङ्गी; हिन्दी-मेंहदी, हिता; उर्दू-मेंहदी (Mehendi); उड़िया-मेंहदी (Mehendi), मेंदी (Mendi); कन्नड़-माञ्ज (Maanj), मोञ्ज (Monj); गुजराती-पनवार मेंदी (Panwar mendi), मेंदी (Mendi); तमिल-ऐवणम् (Aivanam); तैलुगु-कोम्मि (Kommi); बंगाली-मेंहदी (Mehendi), शुदी (Shudi); पंजाबी-हिन्ना (Hinna), मेंहदी (Mehndi); मराठी-मेंदी (Mendi), पनवार (Panwar); मलयालम-मैइलाञ्जि (Mayilanji), मललान्धी (Mallandhi); मणिपुरी-हेना पम्बी (Hena pambi)।अंग्रेजी-एमफायर (Amphire), समफीर (Samphire) इजिप्शियन प्रिवेट (Egyptian privet); अरबी-हिन्ना (Hinna), अलहेना (Alhenna); फारसी-हिना (Hinna), पन्ना (Panna)
Mehandi: मेंहदी दूर करे कई बीमारियां- (knowledge)
वानस्पतिक नाम : Lawsonia inermisLinn. (लासोनिआ इनर्मिस) Syn-Lawsonia albaLam. Lawsonia speciosa Linn.
कुल : Lythraceae (लाइथेसी)
अंग्रेज़ी नाम : Henna (हेना)
संस्कृत-मदयन्तिका, मेदिका, नखरंजका, नखरंजनी, रंजका, राजगर्भा, सुगन्धपुष्पा, रागाङ्गी; हिन्दी-मेंहदी, हिता; उर्दू-मेंहदी (Mehendi); उड़िया-मेंहदी (Mehendi), मेंदी (Mendi); कन्नड़-माञ्ज (Maanj), मोञ्ज (Monj); गुजराती-पनवार मेंदी (Panwar mendi), मेंदी (Mendi); तमिल-ऐवणम् (Aivanam); तैलुगु-कोम्मि (Kommi); बंगाली-मेंहदी (Mehendi), शुदी (Shudi); पंजाबी-हिन्ना (Hinna), मेंहदी (Mehndi); मराठी-मेंदी (Mendi), पनवार (Panwar); मलयालम-मैइलाञ्जि (Mayilanji), मललान्धी (Mallandhi); मणिपुरी-हेना पम्बी (Hena pambi)।
अंग्रेजी-एमफायर (Amphire), समफीर (Samphire) इजिप्शियन प्रिवेट (Egyptian privet); अरबी-हिन्ना (Hinna), अलहेना (Alhenna); फारसी-हिना (Hinna), पन्ना (Panna)।
परिचय
मेंहदी की पत्तियों का प्रयोग रंजक द्रव्य के रूप में किया जाता है तथा इसकी सदाबहार झाड़ियां बाड़ के रूप में लगाई जाती हैं। यह समस्त भारत में मुख्यत पंजाब, गुजरात, मध्य प्रदेश तथा राजस्थान के शुष्क पर्णपाती वनों में पाई जाती है। स्त्रियों के शृंगार प्रसाधनों में विशिष्ट स्थान प्राप्त होने के कारण, मेंहदी बहुत लोकप्रिय है। मेंहदी की पत्तियों को सुखाकर बनाया हुआ महीन पाउडर बाजारों में पंसारियों के यहां तथा अन्य विक्रेताओं के यहां आकर्षक पैक में बिकता है।
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
मेंहदी कफ-पित्तशामक, कुष्ठघ्न तथा ज्वरघ्न होती है तथा दाह, कामला, रक्तातिसार आदि का शमन करती है। इसका लेप वेदना-स्थापन, शोथहर, स्तम्भन, केश्य, वर्ण्य, दाह-प्रशमन, कुष्ठघ्न, व्रणशोधक और व्रणरोपक है।
इसकी मूल स्तम्भक, शोधक, मूत्रल, गर्भस्रावक, आर्तववर्धक तथा केश्य होती है।
इसके पत्र स्तम्भक, प्रशीतक, शोथघ्न, मूत्रल, वामक, कफनिसारक, विबन्धकारक, शोधक, यकृत् को बल प्रदान करने वाले, ज्वरघ्न, केश्य, रक्तवर्धक, स्तम्भक तथा वेदनाशामक होते हैं।
इसके पुष्प हृद्य, प्रशीतक, बलकारक तथा स्वापक (निद्राजनक) होते हैं।
इसके बीज ज्वरघ्न, विबन्धकारक तथा प्रज्ञावर्धक होते हैं।
औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि
- सिर दर्द-गर्मी तथा पित्त की वजह से सिर में दर्द होता हो, तो मेंहदी के 25 ग्राम पत्तों को 50 मिली तैल में उबालकर इस तैल को सिर में लगाने से तथा 10 ग्राम फूलों का 100 मिली पानी में फाण्ट बनाकर 20 मिली मात्रा में पिलाने से लाभ होता है।
- 4½ ग्राम मेंहदी के फूल को पानी में पीसकर कपडे से छान लें, इसमें 7 ग्राम शहद मिलाकर कुछ दिन पीने से गर्मी से उत्पन्न शिरोवेदना का शीघ्र शमन होता है।
- जिस व्यक्ति को गर्मी के कारण सिर में पीड़ा रहती हो, वह और सब तैलों को त्याग कर सिर में केवल मेंहदी का तैल लगाए।
- शिरोभम-मस्तिष्क के रोगों में मेंहदी के 3 ग्राम बीजों को शहद के साथ चाटने अथवा इसके फूलों का क्वाथ पिलाने से अच्छा लाभ होता है। दवा खाने के तुरन्त बाद ही गेहूं की रोटी खांड तथा घी मिलाकर खिलाएं, इससे सिर का चकराना दूर होगा।
- केश रंगने के लिए-मेंहदी के पत्र चूर्ण और नील पत्र चूर्ण को समभाग लेकर, पानी में मिलाकर पीसकर सिर पर लगाने से सफेद बाल कृत्रिम-रूप से काले हो जाते हैं।
- मेंहदी, दही, नींबू तथा चाय की पत्ती, सबको मिलाकर 2-3 घंटे बालों में लगाने से फिर सिर धो लेने से बाल घने, मुलायम, काले और लम्बे होते हैं।
- पालित्य-पत्र को पीसकर सिर पर लगाने से पालित्य तथा खालित्य में लाभ होता है।
- मेंहदी के 8-10 फूलों को सिरके तथा जल में पीसकर मस्तक और तलुए में लगाने से सिर की पीड़ा का शमन होता है।
- शिरोगत दाह तथा कण्डू-4 ग्राम मेंहदी पुष्प तथा 3 ग्राम कतीरा दोनों को रात्रि में पानी में भिगो दें और प्रात मिश्री मिलाकर पिएं, इसके सेवन से शिरोगत दाह का शमन होता है।
- नकसीर-मेंहदी, जौ का आटा, धनियां तथा मुलतानी मिट्टी सबको समान मात्रा में लेकर बारीक पीस लें और पानी मिलाकर लेप बना लें, मस्तक और ललाट पर लेप करें और ऊपर से मलमल का कपड़ा पानी से तर करके रखते हैं। पावं के तलवों पर भी मेंहदी लगाएं, कुछ दिन के प्रयोग से स्थायी लाभ होगा।
- नेत्रों की लाली-10 ग्राम मेंहदी तथा 10 ग्राम जीरा दोनों को दरदरा कूटकर रात्रि में गुलाब-जल में भिगो दें और प्रात छानकर स्वच्छ शीशी में रख लें और 1 ग्राम भूनी हुई फिटकरी को बारीक पीसकर मिला लें और आवश्यकता के समय नेत्रों में डालने से आंखों की लालिमा दूर होती है।
- मेंहदी के हरे पत्तों को खरल में घोटकर टिकिया बना लें। रात्रि में टिकिया को आँख पर बांधकर सोने से नेत्रों की पीड़ा, क्षोभ तथा लालिमा का शमन होता है।
- मुंह के छाले-10 ग्राम मेंहदी के पत्तों को 200 मिली पानी में भिगोकर रख दें, थोडी-देर बाद छानकर इस सुनहरे पानी से गंडूष करने से मुंह के छाले शीघ्र शान्त हो जाते हैं।
- सौन्दर्य प्रसाधन-हरड़ का चूर्ण, नीम के पत्ते, आम की छाल, दाड़िम के पुष्पों की कली और मेंहदी, इनको सम मात्रा में मिलाकर, पीसकर कपड़छान करके उबटन करने से शारीरिक सौन्दर्य निखरता है एवं त्वचा रोगों में लाभ होता है।
- रक्तातिसार-मेंहदी के बीजों को बारीक पीसकर, घी मिलाकर 500 मिग्रा की गोलियाँ बना लें। इन गोलियों को प्रात सायं जल के साथ सेवन करने से रक्तातिसार में लाभ होता है।
- कामला-5 ग्राम मेंहदी के पत्ते लेकर रात्रि को मिट्टी के बरतन में भिगो दें और प्रात काल इन पत्तियों को मसलकर तथा छानकर रोगी को पिला दें। एक सप्ताह के सेवन से पुराने पीलिया रोग में अत्यन्त लाभ होता है।
- प्लीहा-विकार-मेंहदी की छाल बारीक पिसी हुई 30 ग्राम तथा 10 ग्राम नौसादर पीसा हुआ दोनों को मिला लें, प्रात सायं 3 ग्राम मात्रा में साथ देने से प्लीहा-विकारों में लाभ होता है।
नोट :मेंहदी की छाल कामला में भी बहुत लाभकारी है।
- पथरी-10 ग्राम मेंहदी के पञ्चाङ्ग को रात में मिट्टी के बर्तन में उबालकर रखें। प्रात काल उसको छानकर पिलाने से गुर्दे की पथरी टूट-टूटकर निकल जाती है।
- 30 ग्राम मेंहदी के पत्ते व लकड़ी को रात में एक गिलास पानी में भिगो दें तथा प्रात काल पानी निथार लें। पहले जौ का क्षार (यवक्षार) 2 ग्राम लेकर ऊपर से उस पानी को पिलाएं। कुछ दिनों के निरतंर प्रयोग से पथरी टूटकर मूत्रमार्ग से बाहर निकल जाती है।
- मूत्रकृच्छ्र-मेंहदी के पत्रों तथा छाल से निर्मित 50 मिली हिम में 1 ग्राम कलमीशोरा मिलाकर प्रात सायं पिलाएं।
- वीर्यस्राव-मेंहदी के 5-10 मिली पत्र-स्वरस में थोड़ा जल और मिश्री मिलाकर सेवन करने से स्तम्भन होता है।
- सूजाक-50 ग्राम मेंहदी के पत्तों को आधा ली पानी में भिगोकर सुबह मसल कर छानकर तैयार किए गए हिम को 20-30 मिली की मात्रा में दिन में 3-4 बार पिलाये।
- श्वेतप्रदर-5 मिली पत्र-स्वरस को गोदुग्ध में मिलाकर पीने से प्रदर में लाभ होता है।
- घुटनों का दर्द-मेंहदी और एरंड के पत्तों को समभाग पीसकर थोड़ा गर्म करके घुटनों पर लेप करने से घुटनों की पीड़ा में लाभ होता है।
- संधिशूल-मेंहदी के पत्रों से सिद्ध तैल को जोड़ों पर लगाने से वेदना का शमन होता है।
- कुष्ठ-मेंहदी-पत्र तथा पुष्प रस को दिन में दो बार आधा-आधा चम्मच देने से कुष्ठ रोग में लाभ होता है।
- 100 ग्राम मेंहदी छाल को 200 मिली पानी में पकाकर चतुर्थांश शेष क्वाथ बनाकर सुबह-शाम पीने से कुष्ठ तथा अन्य जीर्ण त्वचा रोगों में लाभ होता है।
- मेंहदी के 75 ग्राम पत्तों को रात भर पानी में भिगोकर सवेरे मसलकर छानकर पीने से सभी प्रकार के कुष्ठ रोग में अवश्य लाभ होता है।
- शीतला-मेंहदी के पत्तों को पीसकर रोगी के पैर के तलवे में लेप करने से शीतला में लाभ होता है।
- फोडे-फून्सी-मेंहदी के पत्तों के क्वाथ से सब प्रकार के फोड़े-फून्सियों को धोने से अत्यन्त लाभ होता है।
- अग्निदग्ध-अग्नि से जले हुए स्थान पर मेंहदी की छाल या पत्तों को पीस कर गाढ़ा लेप करने से लाभ होता है।
- कुष्ठ-मेंहदी के पत्रों को पीसकर लगाने से कुष्ठ पामा, रोमकूपशोथ, दाद तथा व्रण में लाभ होता है।
- रोमकूपशोथ-पत्र को पीसकर लगाने से रोमकूपशोथ, क्षत तथा व्रण में लाभ होता है।
- त्वक्रोग-पत्र तथा पुष्प स्वरस की 1/2 से 1 चम्मच मात्रा का दिन में दो बार प्रयोग करने से त्वक्रोग में लाभ होता है।
- मेंहदी पत्र (75 ग्राम) को रात भर पानी में भिगोकर रखें, सुबह मसलकर, छानकर इसका प्रयोग करने से कुष्ठ तथा त्वक् रोगों में लाभ होता है।
- रोमकूप शोथ तथा युवान पिडिका-मेंहदी पत्र क्वाथ से मुख धावन करने से रोमकूपशोथ तथा युवानपिड़िका में लाभ होता है।
- त्वचा विकार-मेंहदी के पत्रों को चित्रक के साथ पीसकर लगाने से त्वचा के सफेद दाग ठीक हो जाते हैं।
- मूर्च्छा-गर्मी और सर्दी की मूर्च्छा को रोकने के लिए 5-10 मिली मेंहदी पत्र-स्वरस को दिन में 3-4 बार 250 मिली दूध के साथ देना चाहिए।
- अनिद्रा-मेंहदी के सूखे फूलों को रूई के स्थान पर तकिए में भरकर जिन व्यक्तियों को नींद न आती हो, उनके सिरहाने रख देने से उन्हें नींद अच्छी आ जाती है।
- ज्वरजन्य दाह-मेंहदी (10 ग्राम फूलों को 200 मिली पानी में उबालकर ठंडा करके बनाए गए फाण्ट) से निर्मित फाण्ट को 30-40 मिली मात्रा में पीने से ज्वरजन्य दाह तथा अनिद्रा में लाभ होता है।
प्रयोज्याङ्ग :मूल, पत्र, पुष्प, बीज तथा त्वक्।
मात्रा :स्वरस 5-10 मिली, बीजचूर्ण 1-3 ग्राम या चिकित्सक के परामर्शानुसार।
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