Hindi– जलपीपल, लुन्ड्रा, भुईओकरा, बुक्कनबूटीSanskrit – जलपिप्पली, शारदी, शकुलादनी, मत्स्यादनी, मत्स्यगन्धा;English – Purple lippia (पर्पल लिप्पिया), फ्रोंग फ्रैट (Frog fruit), केप बीड (Cape weed)Odia – बुक्कम (Bukkam), विषायन (Visayan);Konkadi – अदली (Adali);Kannad – नेरूपिप्पली (Neerupippali);Gujrati – रतोलिया (Ratoliya), रतुलियो (Ratuliyo)Tamil – पोडुकेली (Podukeli), पोडुटलई (Podutalei)Telugu – बोकेनाकु (Bokenaku), बोकन्ना (Bokkena);
Jal Pippali: बेहद गुणकारी है जल पिप्पली- (knowledge)
जल पीपल, पानी में उगने वाला एक पौधा है जिसका फल दिखने में पिप्पली की तरह होता है. इसीलिए इसे जल पिप्पली भी कहा जाता है. आयुर्वेद में जल पिप्पली के कई गुणों को उल्लेख़ है. खासतौर पर पेट के रोगों जैसे कि कब्ज, बवासीर आदि के इलाज में यह जड़ी बूटी बहुत कारगर है. कश्मीर में पायी जाने वाले जलपिप्पली को औषधि की दृष्टि से सबसे अच्छा माना गया है. इस लेख में हम आपको जल पिप्पली के फायदे, नुकसान और औषधीय गुणों के बारे में बता रहे हैं.
जलपिप्पली क्या है? (What is Jal Pippali?)
यह 15-30 सेमी ऊंचाई वाला पौधा है जो मानसून के मौसम में ज्यादा नजर आता है. इसका तना गोल, हरे और पीले रंग का होता है. जल पीपल के पौधे से मछली जैसी गंध आती है. इसके फूल बहुत छोटे आकर के गुलाबी और बैगनी रंग के होते हैं. यही फूल बाद में बढ़कर फल बन जाते हैं और छोटी पिप्पली जैसे नजर आते हैं.
अन्य भाषाओं में जल पिप्पली के नाम (Names of Jal Pippali in Different Languages)
जल पिप्पली का वानस्पतिक नाम Phyla nodiflora (Linn.) Greene (फाइला नोडीफ्लोरा) Syn-Lippia nodiflora (Linn.) Mich है. यह Verbenaceae (वर्बीनेसी) कुल का पौधा है. आइए जानते हैं कि अन्य भाषाओं में इसे किन नामों से जाना जाता है.
Purple Lippia in :
- Hindi– जलपीपल, लुन्ड्रा, भुईओकरा, बुक्कनबूटी
- Sanskrit – जलपिप्पली, शारदी, शकुलादनी, मत्स्यादनी, मत्स्यगन्धा;
- English – Purple lippia (पर्पल लिप्पिया), फ्रोंग फ्रैट (Frog fruit), केप बीड (Cape weed)
- Odia – बुक्कम (Bukkam), विषायन (Visayan);
- Konkadi – अदली (Adali);
- Kannad – नेरूपिप्पली (Neerupippali);
- Gujrati – रतोलिया (Ratoliya), रतुलियो (Ratuliyo)
- Tamil – पोडुकेली (Podukeli), पोडुटलई (Podutalei)
- Telugu – बोकेनाकु (Bokenaku), बोकन्ना (Bokkena);
- Nepali – जलपिप्पली (Jalapippali), एकामर (Aikamar);
- Punjabi – बकन (Bakan), बुकन (Bukan), जलनीम (Jalnim);
- Marathi – रतोलिया (Ratoliya), जलपिम्पली (Jalapimpali);
- Malyalam – कट्टुट्टीप्पली (Kattuttippali);
- Manipuri – चिन्गलेन्गबी (Chinglengbi)
- Persian – बुक्कुन (Bukkun)
जल पिप्पली के औषधीय गुण (Medicinal Properties of Jal Pippali)
- जलपिप्पली कटु, तिक्त, कषाय, शीत, लघु, रूक्ष, तीक्ष्ण, कफ पित्तशामक तथा वातकारक होती है।
- जलपिप्पली हृद्य, चक्षुष्य, शुक्रल, संग्राही, अग्निदीपक, रुचिकारक, मुखशोधक तथा पारद के विकारों का शमन करने वाली होती है।
- यह दाह, व्रण, पित्तातिसार, श्वास, तृष्णा, विष, भम, मूर्च्छा, कृमि, ज्वर तथा नेत्ररोगशामक होती है।
- जलपिप्पली प्रशामक, मूत्रल, स्तम्भक, कामोत्तेजक, क्षतिविरोहक, उदरसक्रियतावर्धक, कृमिरोधी, ज्वरहर, वाजीकारक, शीतलताकारक, पूयजनन तथा विषनाशक है।
- जलपिप्पली हृदय रोग, रक्तविकार, नेत्र रोग, तमकश्वास, श्वसन-नलिका-शोथ, पिपासा, मूर्च्छा, व्रण, ज्वर, प्रतिश्याय, विबन्ध, जानुशूल तथा मूत्राघात शामक होता है।
जल पिप्पली के फायदे और उपयोग (Uses and Benefits of Jal Pippali in Hindi)
आइए जानते हैं कि आयुर्वेद में जल पिप्पली के किन-किन फायदों के बारे में बताया गया है.
सिरदर्द से आराम दिलाती है जल पिप्पली (Jal Pippali gives Relief from Headache in Hindi)
ज्यादा काम करने या नींद पूरी ना होने से सिर में दर्द होना एक आम बात है. अधिकांश लोग सिरदर्द होते ही पेनकिलर दवाएं खाकर दर्द से आराम पा लेते हैं जबकि ये सही तरीका नहीं है. इसकी बजाय आपको घरेलू उपाय अपनाने चाहिए. आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार जल पिप्पली की पत्तियों को पीसकर माथे पर लगाने से सिरदर्द से आराम मिलता है।
नाक से खून बहने की समस्या से राहत दिलाता है जल पिप्पली (Jal Pippali helps to stop bleeding from Nose and ear in Hindi)
गर्मियों के दिनों में अक्सर नकसीर फूटने के कारण नाक से खून रिसने लगता है. आयुर्वेद के अनुसार जल पिप्पली के पत्तों को पीसकर माथे पर लगाने से नकसीर में लाभ मिलता है.
दांत दर्द से आराम दिलाती है जल पिप्पली (Jal Peepal gives relief from Toothache in Hindi)
दांतों में दर्द होने पर जल पिप्पली का उपयोग करना लाभकारी माना गया है. इसके लिए जल पिप्पली की पत्तियों और रसोन को पीसकर दांतों में मलें. ऐसा करने से दांत का दर्द दूर होता है.
सांस से जुड़ी दिक्कतों में फायदा पहुंचाती है जल पिप्पली (Jal Pippali Benefits for Respiratory Problems in Hindi)
वातावरण में बढ़ते प्रदूषण और धूम्रपान की वजह से सांस की बीमारियों से पीड़ित मरीजों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. ऐसे में आयुर्वेद में बताए कुछ घरेलू उपाय अपनाकर आप सांस की तकलीफ को कम कर सकते हैं. आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार जल पिप्पली की पत्तियों के रस की 1-2 ग्राम मात्रा में 2-4 नग काली मिर्च का चूर्ण मिलाएं. इसके सेवन से सांस से जुड़ी समस्याओं में आराम मिलता है.
दस्त रोकने में सहायक है जल पिप्पली (Uses of Jal Pippali to Stop Loose Motion in Hindi)
अगर आप दस्त से परेशान हैं तो जलपीपल और सारिवा से बने काढ़े का सेवन करें. ध्यान रखें कि इस काढ़े को 10-20 मिली की मात्रा में ही लें.
बवासीर के मरीजों के लिए उपयोगी है जल पिप्पली (jal Pippali Benefits for Piles in Hindi)
जंक फ़ूड के अधिक सेवन और खराब जीवनशैली के कारण आज के समय में अधिकांश लोग कब्ज से परेशान रहते हैं. बवासीर होने की सबसे प्रमुख वजह भी कब्ज ही है. आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार जल पिप्पली की पत्तियां बवासीर के दर्द से आराम दिलाने में मदद करती हैं.
इसके लिए 1-3 ग्राम जलपीपल की पत्तियों को पीसकर उसमें 500 मिलीग्राम काली मिर्च और 5 ग्राम मिश्री मिलाकर पीस लें और छान लें. छानने के बाद इसे पिएं और पीने के कुछ ही देर बाद कोई चिकनाई युक्त पदार्थ खाएं. इससे बवासीर में आराम मिलता है.
इसी तरह अगर आपको बवासीर के मस्सों में पिछले 2-4 दिनों से दर्द और खुजली हो रही है तो जलपिप्पली की पत्तियों को पीसकर गाय के मक्खन में मिलाकर मस्सों पर लगाएं. .
पेशाब के दौरान दर्द और जलन से राहत दिलाता है जल पिप्पली (Jal Pippali gives relief from Burning sensation in urine)
अगर आपको पेशाब करते समय दर्द और जलन महसूस होती है तो ऐसे में जल पिप्पली का उपयोग आपके लिए फायदेमंद है. इसके लिए 1-3 ग्राम जलपीपल की ताज़ी पत्तियों को पीसकर उसमें जीरा मिलाकर पिएं. इससे दर्द और जलन दोनों में आराम मिलता है.
गोनोरिया के इलाज में फायदेमंद है जल पिप्पली (Uses of Jal Pippali in Gonorrhoea Treatment in Hindi)
गोनोरिया एक यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) है और इसके लक्षणों को अनदेखा नहीं करना चाहिए. अगर आपको गोनोरिया के लक्षण नजर आते हैं तो डॉक्टर के पास जाएं और साथ में घरेलू उपाय भी अपनाएं. आयुर्वेद के अनुसार 1-3 ग्राम जलपीपल की ताज़ी पत्तियों को पीसकर, छानकर दिन में तीन बार पीने से गोनोरिया (सूजाक रोग) में फायदा मिलता है.
हाथों-पैरों की जलन और जोड़ों का दर्द दूर करती है जलपीपल (Jal Pippali gives relief in Joint Pain in Hindi)
जलपीपल की पत्तियों में ऐसे औषधीय गुण होते हैं जो जोड़ों के दर्द और जलन को दूर करने में मदद करते है. अगर आप जोड़ों के दर्द से परेशान हैं या आपके हाथों पैरों में जलन हो रही है तो प्रभावित हिस्से पर जलपीपल की पत्तियों को पीसकर उसका लेप करें. इससे कुछ ही देर में दर्द और जलन दूर हो जाती है.
चेहरे की झाई मिटाने में मदद करती है जल पिप्पली (Jal Pippali Helps in Removing Face Freckles in Hindi)
अगर आपके चहरे पर झाइयाँ हैं तो जल पिप्पली का उपयोग आपके लिए बहुत फायदेमंद है. आयुर्वेदिक विशेषज्ञों का कहना है कि जलपीपल की पत्तियों को पीसकर चेहरे पर लगाने से झाइयाँ दूर होती हैं. अधिक जानकारी के लिए नजदीकी आयुर्वेदिक चिकित्सक से संपर्क करें.
रक्तपित्त की समस्या को ठीक करती है जल पिप्पली (Jalpipplai Helps in Treatment of Nose Ear Bleeding Problems in Hindi)
नाक या कान से खून बहने की समस्या को आयुर्वेद में रक्तपित्त कहा गया है. यह समस्या गर्मियों में ज्यादा देखने को मिलती है। 2-4 ग्राम जलपीपल पञ्चाङ्ग चूर्ण को या जलपीपल पञ्चाङ्ग को दूध के साथ पीसकर छान लें. छानने के बाद इसमें शक्कर मिलाकर पिएं. इससे रक्तपित्त में जल्दी लाभ मिलता है।
जल पिप्पली के उपयोगी भाग (Useful Parts of Jal Pippali in Hindi)
आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार जल पिप्पली की पत्तियां और पंचांग सेहत के लिए बहुत उपयोगी हैं.
जल पिप्पली का इस्तेमाल कैसे करें (How to use Jal Pippali in Hindi?)
आमतौर पर 10-20 मिली जलपिप्पली के उपयोग की सलाह दी जाती है, अधिक जानकारी के लिए नजदीकी आयुर्वेदिक चिकित्सक से संपर्क करें.
जल पिप्पली कहां पायी या उगायी जाती है ? (Where is Jal Pippali Found or grown?)
यह विश्व में श्रीलंका, बलुचिस्तान, अफ्रीका एवं अन्य देशों में उष्णकटिबंधीय भागों में प्राप्त होता है। यह भारत में विशेषत दक्षिण के राज्यों में यह पायी जाती है। बारिश के मौसम में यह ज्यादा फैलती है। कश्मीर में पायी जाने वाली जलपिप्पली को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
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