Hindi (Ragi in Hindi) – मंडुआ, रागी, मकरा, मंडल, रोत्काEnglish – कोराकैन मिलेट (Coracan millet), इण्डियन मिलेट (Indian millet), अफ्राप्कन मिलेट (African millet), पोको ग्रास (Poko grass), Finger millet (फिंगर मिलेट)Sanskrit – मधूलिका, नर्तक, नृत्यकुण्डल, बहुपत्रक, भूचरा, कठिन, कणिशOriya – मांडिया (Mandia);उर्दू-मंडवा (Mandwa)Assamese – मरूबा धान (Maruba dhan)Konkani – गोन्ड्डो (Gonddo), नाचणे (Nachne)Kannada – रागी (Ragi)Gujarati – पागली (Pagali), बावतोनागली (Bavtonagli), नावतोनागली (Navtonagli)Bengali – मरुआ (Marua)Tamil – केलवारागू (Kelvaragu), कयुर (Kayur)Telugu – रागुलु (Ragulu)Nepali – कोदो (Kodo)Punjabi – चालोडरा (Chalodra), कोदा (Koda), कोदों (Kodon), मंधल (Mandhal)Marathi (Ragi in marathi) – नचीरी (Nachiri), नगली (Nagli), नाचणी (Nachini)Malayalam – मुत्तरि (Muttari)Rajasthani – रागी (Ragi)


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Mandua: मंडुआ (रागी) के हैं अनेक अनसुने फायदे- (knowledge)

Tikeshwar Rajnre

Ragi ke Fayde

आयुर्वेदिक

मंडुआ को मडुआ या रागी भी बोला जाता है। सामान्य तौर पर मंडुआ या रागी का उपयोग अनाज के रूप में होता है क्योंकि यह ना सिर्फ स्वादिष्ट होता है बल्कि बहुत ही पौष्टिक भी होता है। प्रायः मंडुआ के आटे  को गेहूं के आटे में मिलाकर प्रयोग में लाया जाता है और देश भर में इससे कई तरह के व्यंजन तैयार किए जाते हैं। रागी से उपमा, सूप, बिस्किट्स, डोसा आदि बनाए जाते हैं और लोग बहुत चाव से इन्हें खाते हैं। आपने भी रागी या मंडुआ के आटे (marua ka atta) से तैयार रोटी का सेवन किया होगा। लोग रागी या मंडुआ के बारे में इतनी ही जानकारी रखते हैं कि रागी का उपयोग केवल अनाज के रूप में किया जाता है, लेकिन सच यह है कि रागी एक बहुत ही गुणी औषधि भी है और इससे रोगों को भी ठीक किया जाता है।

Ragi ke Fayde

आयुर्वेदिक ग्रंथों में रागी (Ragi) को लेकर कई फायदेमंद बातें बताई गई हैं। मंडुआ के सेवन से अत्यधिक प्यास लगने की समस्या खत्म होती है, शारीरिक कमजोरी दूर हो सकती है और कफ दोष को ठीक किया जा सकता है। आप मंडुआ का प्रयोग मूत्र रोग को ठीक करने, शरीर की गंदगी साफ करने के लिए भी कर सकते हैं। इतना ही नहीं शरीर की जलन, त्वचा विकार, किडनी या पथरी की समस्या में भी मंडुआ का इस्तेमाल  होता है। आइए जानते हैं कि आप मंडुआ का इस्तेमाल किस-किस बीमारी में कर सकते हैं।


मंडुआ क्या है? (What is Ragi?)

अनेक आयुर्वेदिक ग्रंथों में मंडुआ के बारे में जानकारी मिलती है। मंडुआ या रागी (Ragi) का पौधा लगभग 1 मीटर तक ऊचाँ होता है। इसके फल गोलाकार अथवा चपटे तथा झुर्रीदार होते हैं। मंडुआ की बीज गोलाकार, गहरे-भूरे रंग के, चिकने होते हैं। इसकी बीज (ragi seeds) झुर्रीदार और एक ओर से चपटे होते हैं। इन्हें ही मड़वा या मंडुआ कहा जाता है। इससे बने आहार मोटापे तथा डायबिटीज से ग्रस्त रोगियों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद होता है।

मंडुआ के बारे में विशेष जानकारी – कई स्थानों पर मंडुआ का प्रयोग कोदो के नाम पर किया जाता है; लेकिन मुख्य कोदो इससे भिन्न प्रजाति है। कोदो का नाम कोद्रव (Paspalum scrobiculutum Linn.) है।

 

अनेक भाषाओं में मंडुआ के नाम (Name of Mandua (Ragi) in Different Languages)

मंडुआ का वानस्पतिक नाम Eleusine coracana (Linn.) Gaertn. (एलुसाइनी कोराकैना) Syn-Cynosurus coracanus Linn. है और यह Poaceae (पोएसी) कुल का है। मंडुआ या रागी को अन्य अनेक नामों से जाना जाता है, जो ये हैंः-

Mandua in –

  • Hindi (Ragi in Hindi) – मंडुआ, रागी, मकरा, मंडल, रोत्का
  • English – कोराकैन मिलेट (Coracan millet), इण्डियन मिलेट (Indian millet), अफ्राप्कन मिलेट (African millet), पोको ग्रास (Poko grass), Finger millet (फिंगर मिलेट)
  • Sanskrit – मधूलिका, नर्तक, नृत्यकुण्डल, बहुपत्रक, भूचरा, कठिन, कणिश
  • Oriya – मांडिया (Mandia);उर्दू-मंडवा (Mandwa)
  • Assamese – मरूबा धान (Maruba dhan)
  • Konkani – गोन्ड्डो (Gonddo), नाचणे (Nachne)
  • Kannada – रागी (Ragi)
  • Gujarati – पागली (Pagali), बावतोनागली (Bavtonagli), नावतोनागली (Navtonagli)
  • Bengali – मरुआ (Marua)
  • Tamil – केलवारागू (Kelvaragu), कयुर (Kayur)
  • Telugu – रागुलु (Ragulu)
  • Nepali – कोदो (Kodo)
  • Punjabi – चालोडरा (Chalodra), कोदा (Koda), कोदों (Kodon), मंधल (Mandhal)
  • Marathi (Ragi in marathi) – नचीरी (Nachiri), नगली (Nagli), नाचणी (Nachini)
  • Malayalam – मुत्तरि (Muttari)
  • Rajasthani – रागी (Ragi)
  • Arabic – तैलाबौन (Tailabon)
  • Persian – मन्डवाह (Mandwah)

मंडुआ या रागी के फायदे और उपयोग (Mandua or Ragi Benefits and Uses in Hindi)

मंडुआ के औषधीय प्रयोग (benefits of mandua), प्रयोग की मात्रा एवं विधियां ये हैंः-

 

उल्टी को रोकने के लिए मंडुआ का सेवन (Ragi Benefits in Vomiting Treatment in Hindi)

कई लोगों को उल्टी से संबंधित परेशानी होती रहती है। ऐसे में मंडुआ का प्रयोग लाभ पहुंचाता है। महुआ, हाऊबेर, नीलकमल तथा मधूलिका के चूर्ण को घी तथा शहद के साथ सेवन करें। इससे उल्टी रुक जाती है।

 

मंडुआ के प्रयोग से रूसी से छुटकारा (Uses of Ragi in Fighting with Dandruff in Hindi)

महुआ, हाऊबेर, नीलकमल तथा मधूलिका के चूर्ण को घी तथा शहद के साथ सेवन करें। इससे रूसी से छुटकारा मिलता है।


 

सर्दी-जुकाम में मंडुआ का प्रयोग लाभदायक (Uses of Raagi in Cold and Cough in Hindi)

सर्दी-जुकाम जैसी परेशानी में भी मंडुआ का उपयोग बहुत अधिक लाभ पहुंचाता है। इसके लिए आपको गुग्गुलु, राल, पतंग, प्रियंगु, मधु, शर्करा, मुनक्का,मधूलिका तथा मुलेठी लेना है। इनका काढ़ा बनाकर गरारा करना है। इससे रक्तज तथा पित्तज सर्दी-जुकाम की समस्या में लाभ (ragi ke fayde) होता है।

cold and cough

 

सांसों की बीमारी में मंडुआ का उपयोग फायदेमंद (Ragi Benefits in Cure Respiratory Disease in Hindi)

अनेक लोगों को सांसों की बीमारी हो जाती है। आप मंडुआ का विधिपूर्वक इस्तेमाल करेंगे तो सांसों के रोग में फायदा मिलता है। मंडुआ आदि द्रव्यों से विधिपूर्वक बनाए गए शृङ्गयादि घृत (मधूलिकायुक्त) का मात्रापूर्वक प्रयोग करें। इससे सांसों की बीमारी में लाभ होता है।

 

दस्त को रोकने के लिए मंडुआ का इस्तेमाल (Uses of Ragi to Stop Diarrhea in Hindi)

मंडुआ  का लाभ दस्त की समस्या में भी ले सकते हैं। इसका प्रयोग दस्त और पेट दर्द की चिकित्सा में किया जाता है। दस्त में मंडुआ के प्रयोग की जानकारी के बारे में किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से सलाह लें।


 

कब्ज में फायदेमंद मंडुआ का सेवन (Benefits of Raagi in Constipation in Hindi)

बहुत लोगों को कब्ज की समस्या रहती है। दरअसल कब्ज एक ऐसी बीमारी है जो कई रोगों का कारण बनती है। विशेषज्ञों के अनुसार रागी का नियमित सेवन लीवर को स्वस्थ बनाये रखने में मदद करता है. जिससे गैस, एसिडिटी और कब्ज आदि समस्याओं में भी आराम मिलता है. अगर आप पेट की कब्ज या गैस से परेशान रहते हैं तो रागी का सेवन करें.

 

हिचकी की समस्या को ठीक करता है मंडुआ (Ragi Benefits in Hiccup Problem in Hindi Hindi)

मंडुआ आदि द्रव्यों से विधिपूर्वक सिद्ध  शृङ्गयादि घृत (मधूलिकायुक्त) का मात्रापूर्वक प्रयोग करने से हिक्का में लाभ होता है।


 

कुष्ठ रोग में मंडुआ का प्रयोग (Uses of Ragi in Fighting with Leprosy Disease in Hindi)

  • मंडुआ को सफेद चित्रक के साथ मिलाकर सेवन करने से कुष्ठ रोग में लाभ होता है।
  • महुआ, हाऊबेर, नीलकमल तथा मधूलिका के चूर्ण को घी तथा शहद के साथ सेवन करें। इससे उल्टी, कुष्ठ रोग, हिचकी और सांसों की बीमारी में लाभ (ragi ke fayde) मिलता है।
  • मधूलिका, तुगाक्षीरी, दूध, लघुपंच की जड़ तथा काकोल्यादि गण से पेस्ट और काढ़ा को घी में पका लें। इसके प्रयोग से मुखमण्डिका नामक बाल रोग में लाभ होता है।

 

मंडुआ से खांसी का इलाज (Benefits of Raagi in Cough Disease Treatment in Hindi)

मंडुआ आदि द्रव्यों से विधिपूर्वक पकाए गए शृङ्गयादि घी (मधूलिकायुक्त) का सेवन करने से खांसी ठीक (benefits of mandua) हो जाती है। इसका सेवन की जानकारी आयुर्वेदिक चिकित्सक से जरूर लें।

Ragi Atta

 

मोटापा घटाने में सहायक है रागी (Benefits of Ragi for Reducing Obesity in Hindi)

आज के समय में अनियमित जीवनशैली और अधिक मात्रा में फास्ट फ़ूड खाने के कारण मोटापे की समस्या बढ़ती जा रही है. हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि अगर आप अपनी डाइट में हेल्दी चीजों को शामिल करें तो मोटापे पर नियंत्रण पाया जा सकता है. एक शोध के अनुसार रागी में ऐसे औषधीय गुण हैं जो फैट को कम करने में मदद करते हैं. इसलिए अगर आप बढ़ते वजन से परेशान हैं तो अपने रोजाना के आहार में रागी को शामिल करें.  

 

ऑस्टियोपोरोसिस में रागी के फायदे (Uses of Ragi in Treatment of Osteoporosis in Hindi)

रागी में मौजूद पोषक तत्व हड्डियों को कमजोर होने से रोकते हैं और उन्हें स्वस्थ एवं मजबूत बनाये रखते हैं. विशेषज्ञों के अनुसार रागी के सेवन से ऑस्टियोपोरोसिस होने की संभावना कम होती है. यदि आप ऑस्टियोपोरोसिस के मरीज हैं तो अपनी डाइट में रागी का सेवन बढ़ा दें. 

 

मंडुआ के उपयोगी भाग (Beneficial Part of Mandua)

बीज (ragi seeds)

 

मंडुआ के प्रयोग की मात्रा (How Much to Consume Mandua?)

काढ़ा – 10-20 मिली

रागी का बहुत अधिक मात्रा में सेवन करने पर इसके नुकसान (Side effects of Ragi) भी हैं। बेहतर होगा कि आप मंडुआ या रागी का प्रयोग चिकित्सक के परामर्शानुसार करें।

 

मंडुआ कहां पाया या उगाया जाता है? (Where is Mandua Found or Grown?)

मंडुआ या रागी (ragi) पूरे भारत में लगभग 2300 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है। इसकी विशेषतः पर्वतीय क्षेत्रों में खेती की जाती है। यह उच्चपर्वतीय प्रदेशों में भी पाया जाता है।


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