रक्तचंदन, रक्ताङ्ग, तिलपर्ण, रक्तसार, प्रवालफल, लोहित चंदन, मलयज; Hindi-लाल चंदन, रक्तचंदन; Odia- रक्तचंदन (Raktachandan), इन्द्राsचन्दोनो (Indrochandono); Kannada-रक्तशंदन (Raktashandana), होने (Hone); Bengali-रक्तचंदन (Raktchandan); Gujarati-रतांजली (Ratanjali); Telugu-रक्तचंदनम् (Raktchandanam); Tamil-शेन् चंदनम् (Shen chandanam), अट्टी (Atti), सिवप्पु चंदनम (Sivappu chandanam); Nepali-रक्तचंदन (Raktachandan);
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Rakt Chandan: बेहद गुणकारी है रक्त चन्दन- (knowledge)
रक्त चंदन का परिचय (Introduction of Rakt Chandan)
चंदन की बात आते ही नाक में भीनी-भीनी खुशबू आनी शुरू हो जाती है जिससे पूरा वातावरण पवित्र जैसा महसूस होने लगता है। पर शायद आपको पता नहीं कि चंदन तरह के होते हैं, एक तो श्वेत, रक्त यानि लाल और पीत यानि पीला चंदन । वैसे तो पूजा के कार्य में चंदन के इस्तेमाल के बारे में तो सबको पता है,लेकिन क्या आप जानते हैं कि सभी चंदन के प्रकारों की तरह रक्त चंदन का भी आयुर्वेद में औषधी के रूप में भी अनगिनत तरीकों से उपयोग किया जाता है। अगर नहीं तो, चलिये इसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हैं और अपना ज्ञान बढ़ाते हैं।
रक्त चंदन क्या है? (What is Rakt Chandan in Hindi?)
प्राचीन आयुर्वेदीय निघण्टुओं व संहिताओं में चन्दन के तीन भेदों का वर्णन मिलता है। सुश्रुत-संहिता के पटोलादि, सारिवादि तथा प्रिंग्वादि-गणों में रक्त-चन्दन का वर्णन प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त भावप्रकाश-निघण्टु में रक्त, श्वेत तथा पीत तीन प्रकार के चन्दनों का उल्लेख किया गया है।
रक्तचंदन 8-11 मी ऊँचा, मध्यमाकारीय, सघन शाखा-प्रशाखायुक्त, पर्णपाती वृक्ष होता है। इसकी शाखाएँ धूसर रंग की होती हैं। इसकी छाल 1-1.5 सेमी मोटी, कृष्णाभ-भूरे रंग की तथा क्षत होने पर गहरे रक्तवर्णी निर्यास-युक्त होती है। इसकी अन्तकाष्ठ गहरे रक्तवर्ण या गहरे-बैंगनी वर्ण की होती है। इसके पत्ते संयुक्त, 10-18 सेमी लम्बे, अण्डाकार, गोल तथा प्रत्येक पर्णवृन्त पर प्राय: तीन-तीन या पांच-पांच पत्रक होते हैं। इसके फूल 2 सेमी लम्बे, सुगन्धित, द्वि-लिंगी, पीत रंग के, छोटे, लगभग 5 मिमी लम्बे पुष्पवृंत पर लगे होते हैं। इसकी फली 3.8-5 सेमी व्यास की होती है। बीज संख्या में 1-2, वृक्काकार, 1-1.5 सेमी लम्बे, रक्ताभ भूरे रंग के, चिकने तथा चर्मिल होते हैं। इसका पुष्पकाल एवं फलकाल जनवरी से मई तक होता है।
अन्य भाषाओं में रक्तचंदन के नाम (Names of Rakt Chandan in Different Languages)
रक्तचंदन का वानास्पतिक नाम Pterocarpussantalinus Linn.f. (टेरोकार्पस सैन्टेलिनस) Syn-Lingoum santalinum (Linn.f.) Kuntze होता है। इसका कुल Fabaceae (फैबेसी) होता है और इसको अंग्रेजी में Red Sandal Wood (रैड सैनडल वुड) कहते हैं। चलिये अब जानते हैं कि रक्तचंदन और किन-किन नामों से जाना जाता है।
Sanskrit-रक्तचंदन, रक्ताङ्ग, तिलपर्ण, रक्तसार, प्रवालफल, लोहित चंदन, मलयज;
Hindi-लाल चंदन, रक्तचंदन;
Odia- रक्तचंदन (Raktachandan), इन्द्राsचन्दोनो (Indrochandono);
Kannada-रक्तशंदन (Raktashandana), होने (Hone);
Bengali-रक्तचंदन (Raktchandan);
Gujarati-रतांजली (Ratanjali);
Telugu-रक्तचंदनम् (Raktchandanam);
Tamil-शेन् चंदनम् (Shen chandanam), अट्टी (Atti), सिवप्पु चंदनम (Sivappu chandanam);
Nepali-रक्तचंदन (Raktachandan);
Punjabi-लाल चन्दन (Lal chandan);
Marathi-रक्तचंदन (Raktchandan), लाल चन्दन (Lal chandan);
Malayalam-रक्तशंदनम् (Raktshandanam), पत्रान्गम (Patrangam), तिलपर्णी (Tilparnni)।
English-रूबीवुड (Ruby wood), इण्डियन सैनडलवुड (Indian sandal wood);
Arbi-संदले अहमर (Sandale ahmar), सैन्डुलम्र (Sandulhamra), उन्डम (Undum);
Persian-संदले सुर्ख (Sandale surkh), बुकम (Buckum)।
रक्तचंदन का औषधीय गुण (Medicinal Properties of Rakt Chandan in Hindi)
रक्तचंदन किन-किन बीमारियों के लिए इलाज के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है इसके बारे में जानने के लिए सबसे पहले लाल चंदन के औषधीय गुणों के बारे में जान लेते हैं-
लाल चन्दन, मधुर, कड़वा, शीत, लघु, रूखा, कफपित्त से आराम दिलाने वाला, चक्षुष्य (Opthalmic), वृष्य (Aphrodisiac), रक्षोघ्न (Antiprotective), बलकारक होता है।
यह उल्टी, तृष्णा या प्यास, रक्तपित्त (कान-नाक से खून बहने की बीमारी), ज्वर या बुखार, व्रण या घाव, विष, कास या खांसी, जन्तुनाशक होता है।
इसकी लकड़ी स्तम्भक (Styptic) यानि रक्त को रोकने में मददगार, बलकारक, ज्वरघ्न (ज्वर को कम करने वाला), कृमिघ्न (कृमि को मारने वाला), नियतकालिक व्याधिहर (Antiperiodic), स्वेदजनन (पसीने को उत्पन्न करने वाला ) तथा विषनाशक होता है।
यह उद्वेष्टनरोधी (Antispasmodic), सूत्रकृमिनाशक, शोथरोधी या सूजन को कम करने वाला, जोड़ो के सूजनको कम करने वाला, केन्द्रीय-तंत्रिकातंत्र अवसादक, पुंस्त्वरोधी (Antiandrogenic), जीवाणुरोधी (एंटीबैक्टिरीयल), ज्वरघ्न तथा अनूर्जतारोधी (Antiallergic) होता है।
रक्त चंदन के फायदे और उपयोग (Uses and Benefits of Rakt Chandan in Hindi)
रक्त चंदन त्वचा संबंधी और पेट संबंधी समस्याओं के लिए लाभकारी होने के साथ-साथ दर्दनिवारक के रूप में भी काम करता है, लेकिन इसका इस्तेमाल कैसे किया जाता है। चलिये इसके बारे में विस्तार से जानते हैं-
सिरदर्द में फायदेमंद रक्तचंदन (Rakt Chandan Beneficial in Headache in Hindi)
दिन भर के थकान के कारण सिरदर्द से परेशान रहते हैं तो रक्तचन्दन, उशीर, मुलेठी, बला, व्याघनखी तथा कमल इन 6 द्रव्यों को समान मात्रा में लेकर दूध में पीसकर माथे पर लगाने से सिरदर्द से आराम मिलता है। इसके अलावा लालचन्दन, नमक तथा सोंठ को जल में घिसकर मस्तक पर लेप करने से सिर दर्द मिटता है।
माइग्रेन या आधासीसी के दर्द से दिलाये राहत रक्तचंदन (Benefit of Rakt Chandan to Get Relief from Migraine in Hindi)
रक्त चन्दन की अन्तकाष्ठ को पीसकर मस्तक में लगाने से आधीसीसी या माइग्रेन की वेदना से आराम मिलता है।
आँखों के रोगों के इलाज में लाभकारी रक्तचंदन (Rakt Chandan Beneficial to Treat Eye Diseases in Hindi)
आजकल दिन भर कंप्यूटर पर काम करने के कारण तरह-तरह की आँख की समस्याएं होती है, जैसे, आँख दर्द, सूजन आदि। इन सब समस्याओं में रक्तचंदन का इस्तेमाल करने से जल्दी आराम मिलता है। यहां तक कि मोतियाबिंद में भी रक्तचंदन का उपयोग करने से फायदा मिलता है।
-लालचंदन को जल, शहद, घी अथवा तैल में घिसकर नेत्रों में लगाने से एक सप्ताह में जीर्ण काला मोतिया रोग में लाभ होता है।
-चन्दन 1 भाग, सेंधानमक 2 भाग, हरड़ 3 भाग तथा पलाश पत्ते के रस 4 भाग इन सबका पीसकर कर अंजन या काजल की तरह बनाकर प्रयोग करने से नेत्र रोगों में लाभ होता है।
-लाल चंदन के काष्ठीय भाग को जल में घिसकर, नेत्र के बाहर चारों तरफ लगाने से आँख के सूजन में लाभ होता है।
दांत दर्द से दिलाये राहत रक्तचंदन (Benefit of Rakt Chandan Beneficial to Treat Toothache in Hindi)
दांत दर्द की समस्या तो आम होती है। लालचंदन की अन्तकाष्ठ को पीसकर दांतों पर मलने से दांत दर्द से जल्दी आराम मिलता है।
हिक्का की परेशानी से दिलाये आराम रक्तचंदन (Rakt Chandan Beneficial to Treat Hiccups in Hindi)
अगर आप बार-बार हिक्का होने से परेशान रहते हैं तो लालचन्दन को दूध में घिसकर 1-2 बूंद नाक में डालने से हिक्का बन्द हो जाती है।
पित्तातिसार के इलाज में लाभकारी रक्तचंदन (Benefit of Rakt Chandan to Treat Cholecystitis in Hindi)
दारुहरिद्रा, धमासा, बेलगिरी, सुगन्धबाला तथा लाल चन्दन (2-4 ग्राम चूर्ण) अथवा लाल चन्दन, सुंधबाला, नारगमोथा, भूनिम्ब तथा धमासा चूर्ण का सेवन करने से आमदोष का पाचन होकर पित्तातिसार में लाभ होता है।
रक्तातिसार मे फायदेमंद रक्तचंदन (Rakt Chandan Beneficial to Treat Blood Dysentry in Hindi)
लालचन्दन का काढ़ा बनाकर 20-40 मिली काढ़े में मधु मिलाकर पिलाने से रक्तातिसार बंद होता है।
उल्टी के कष्ट से दिलाये आराम रक्तचंदन (Benefit of Rakt Chandan to Get Relief from Vomiting in Hindi)
अगर आपके दिनचर्या के कारण उल्टी की समस्या आम बीमारी बनती जा रही है तो लाल चंदन के लकड़ी के भाग को मधु में घिसकर चटाने से उल्टी बंद हो जाती है।
प्रवाहिका के इलाज में लाभकारी रक्तचंदन (Rakt Chandan Beneficial to Treat Dysentry in Hindi)
दस्त को रोकने में अगर कोई इलाज काम नहीं कर रहा है तो लालचन्दन का काढ़ा बनाकर पीने से प्रवाहिका से आराम मिलता है।
रक्तार्श में लाभकारी रक्तचंदन (Rakt Chandan Beneficial to Treat Hemorrhoids in Hindi)
अगर बवासीर की अवस्था गंभीर हो गई है और उससे खून निकलने लगा है तो अनार का छिल्का, लालचंदन, चिरायता, धमासा तथा सोंठ का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली काढ़े में गाय का घी मिलाकर पीने से रक्तार्श (खूनी बवासीर) में लाभ होता है।
इसके अलावा लाल चन्दन के पत्ते अथवा छाल से बने काढ़े (20-40 मिली) का सेवन करने से अर्श या बवासीर में लाभ होता है।
प्रदर या सफेद पानी के इलाज में लाभकारी रक्तचंदन (Benefit of Rakt Chandan to Get Relief from Leucorrhoea in Hindi)
रक्त चन्दन आदि द्रव्यों से बने पुष्यानुग चूर्ण को खाने से प्रदर या सफेद पानी में अत्यन्त लाभ होता है।
भग्न के उपचार में लाभकारी रक्तचंदन (Rakt Chandan Beneficial to Treat Fracture in Hindi)
मंजिष्ठा, मुलेठी, लाल चन्दन तथा शालि चावल को पीसकर शतधौत घी में मिलाकर भग्न (हड्डी टूटना) पर लेप करने से लाभ होता है।
व्यंग के उपचार में फायदेमंद रक्तचंदन (Benefit of Rakt Chandan to Get Relief from Blemishes in Hindi)
लालचंदन, मंजिष्ठा, कूठ, पठानी लोध्र, फूल प्रियंगु, बरगद के अंकुर तथा मसूर की दाल को पीसकर चेहरे पर लेप करने से व्यंग (झाँई) का शमन होता है तथा मुँह की रौनक बढ़ने लगती है।
विसर्प या हर्पिज़ के इलाज में लाभकारी रक्तचंदन (Rakt Chandan Beneficial to Treat Herpes in Hindi)
कमल नाल, लालचन्दन, लोध्र, खस, कमल, नीलकमल, अनन्तमूल, आमलकी और हरीतकी को दूध में पीसकर लेप करने से पित्तज विसर्प रोग में लाभ होता है। इसके अलावा समान मात्रा में लाल चंदन तथा नीलकमल का काढ़ा बनाकर 20-40 मिली काढ़े को पिलाने से विसर्प में लगाने से हर्पिज का घाव जल्दी ठीक होता है।
विद्रधि यानि पेट के फोड़ा को ठीक करने में लाभकारी रक्तचंदन (Rakt Chandan Beneficial to Treat Herpes in Hindi)
पेट में फोड़ा होने से जो कष्ट होता है उसके इलाज में रक्तचंदन का प्रयोग करने से जल्दी राहत मिलने लगती है। श्वेत और लाल चन्दन को दूध में पीसकर लेप करने से पित्तज-विद्रधि से आराम मिलता है।
इसके अलावा लाल चन्दन, मंजिष्ठा, हरिद्रा, मुलेठी और गेरू इन 5 द्रव्यों को समान मात्रा में लेकर दूध में पीसकर लेप करने से रक्तज विद्रधि एवं आगन्तुज-विद्रधि में लाभ होता है।
आग से जले घाव के इलाज में सहायक रक्तचंदन (Rakt Chandan Beneficial to Treat Burn in Hindi)
वंशलोचन, प्लक्ष, लाल चन्दन, गेरू और गुडूची इन 5 द्रव्यों को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर, घी में मिलाकर लेप करने से आग से जले घाव को ठीक करने में जल्दी राहत मिलती है।
व्रण या घाव को ठीक करने में लाभदायक रक्तचंदन (Benefit of Rakt Chandan to Get Relief from Ulcer in Hindi)
अगर घाव ठीक होने का नाम नहीं ले रहा है तो लाल चंदन की छाल की त्वचा को पीसकर घाव पर लगाने से घाव जल्दी भर जाते हैं।
त्वचा संबंधी बीमारी में लाभदायक रक्तचंदन (Rakt Chandan Beneficial in Skin Diseases in Hindi)
रक्त चन्दन के लकड़ी के भाग को पीसकर, गुनगुना करके लगाने से त्वचा संबंधी किसी भी रोगों में लाभ मिलता है।
पित्तज-शोध या सूजन को ठीक करने में लाभकारी रक्तचंदन (Benefit of Rakt Chandan to Get Relief from Pith Inflammation in Hindi)
मुलेठी, लालचन्दन, मूर्वा, नरसल मूल, पद्माख, खस, सुगन्धवाला तथा कमल इन द्रव्यों को समान मात्रा में लेकर जल में पीसकर लेप करने से पित्तजशोथ में लाभ होता है।
बुखार के लक्षणों से आराम दिलाने में लाभकारी रक्तचंदन (Rakt Chandan Beneficial to Treat Fever in Hindi)
बुखार होने पर शरीर में दर्द, जलन जैसे लक्षणों से आराम दिलाने में रक्तचंदन का उपयोग बहुत फायदेमंद होता है-
–लाल चन्दन, वासा, नागरमोथा, गुडूची तथा द्राक्षा से बने 20-40 मिली हिम को पीने से बुखार से आराम मिलता है।
–लाल चंदन, धनिया, सोंठ, खस, पीपल तथा मोथा इनसे बने काढ़ा (20-40 मिली) में मधु तथा मिश्री मिलाकर पीने से तृतीयक ज्वर में लाभ होता है।
-लाल चंदन के पत्ते तथा छाल का काढ़ा बनाकर 20-40 मिली मात्रा में पीने से बुखार से राहत मिलती है।
-लाल चंदन को घिसकर पानी में मिलाकर पिलाने से ज्वर तथा ज्वर के कारण होने वाली दाह से आराम मिलता है।
रक्तपित्त (नाक-कान से खून बहने की बीमारी) के इलाज में फायदेमंद रक्तचंदन (Rakt Chandan Benefits in Bleeding Problem in Hindi)
समान मात्रा में उशीर, कालीयक, पठानी लोध्र, पद्मकाठ, फूलप्रियंगु, कायफल त्वक्, शंख भस्म, स्वर्ण गैरिक तथा सब के बराबर लाल चंदन अथवा उशीर, कालीयक आदि को अलग-अलग समान मात्रा में लाल चन्दन के साथ चूर्ण बनाकर 1-3 ग्राम की मात्रा में लेकर चावल के धोवन में घोल कर शर्करा मिला कर पीने से रक्तपित्त, अस्थमा/ दम फूलना, अत्यधिक प्यास तथा जलन से जल्दी आराम मिलता है।
रक्तचंदन का उपयोगी भाग (Useful Parts of Rakt Chandan)
आयुर्वेद के अनुसार रक्तचंदन का औषधीय गुण इसके इन भागों को प्रयोग करने पर सबसे ज्यादा मिलता है-
-अंतकाष्ठ
-पत्ता
-छाल और
-फल।
रक्तचंदन का इस्तेमाल कैसे करना चाहिए (How to Use Rakt Chandan in Hindi)
यदि आप किसी ख़ास बीमारी के घरेलू इलाज के लिए रक्तचंदन का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो बेहतर होगा कि किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही इसका उपयोग करें। चिकित्सक के सलाह के अनुसार 3-5 ग्राम चूर्ण और 20-40 मिली काढ़ा ले सकते हैं।
रक्तचंदन कहां पाया या उगाया जाता है (Where is Rakt Chandan Found or Grown in Hindi)
यह दक्षिणी भारत में मुख्यत दक्षिण-आंध्र प्रदेश, दक्षिण-पूर्वी कर्नाटक, उत्तरी तमिलनाडू, अण्डमान एवं महाराष्ट्र के शुष्क, पहाड़ी स्थानों में लगभग 150-900 मी तक की ऊँचाई पर पाया जाता है। कुछ विद्वान् रक्त-चन्दन के स्थान पर कुचन्दन या पंत्राग का ग्रहण करते है, परन्तु यह तीनों आपस में बिल्कुल भिन्न हैं। यद्यपि रक्त चन्दन तथा पंत्राग के वृक्षों में कुछ समानता पाई जाती है तथा कई स्थानों पर चन्दन के स्थान पर पंत्राग की लकड़ी का औषधी के रूप में प्रयोग किया जाता है। तथापि यह दोनों आपस में बिल्कुल भिन्न है।
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